यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में सत्संगति पर निबंध मिलेगा। Here you will get Paragraph & Short Essay on Satsangati in Hindi Language for students of all Classes in 100 and 400 words. Short Essay on Keeping Good Company in Hindi Language.
Essay on Satsangati in Hindi – सत्संगति पर निबंध
Short Essay on Satsangati in Hindi – सत्संगति पर निबंध (100 words)
हमारे बुजुर्ग आमतौर पर हमें सलाह देते हैं कि “अच्छी कंपनी रखें, बुरी कंपनी से बचें”। यह सच है कि हम उसकी कंपनी द्वारा एक आदमी का न्याय करते हैं। जो चोर के साथ कंपनी रखता है वह निश्चित रूप से चोर होगा। अच्छी सत्संगति वाले व्यक्ति के पास अच्छे चरित्र और विचार होंगे। इसके अलावा अच्छे दोस्त खुशी का स्रोत हैं। यदि वह एक अच्छी सत्संगति रखता है तो यहां तक कि एक बुरे चरित्र का भी सम्मान किया जाएगा। आमतौर पर यह बहुत मुश्किल होता है क्योंकि एक बुरे आदमी को एक और बुरे आदमी के साथ कंपनी रखने के लिए प्रवण होता है। तो जब हम अपने चरित्र को ढाला करते हैं, तो हमें इसे अच्छी सत्संगति रखने के इरादे से करना चाहिए।
Short Essay on Satsangati in Hindi Language – सत्संगति पर निबंध (400 words)
मानव को समाज में उच्च पद पाने के लिए सत्संगति उतनी ही आवश्यक है जितनी कि जीवित रहने के लिए रोटी-कपड़ा। मानव बचपन से ही पेट भरने का प्रयास करता है। तब से ही उसे अच्छी संगति मिलनी चाहिए। जिसके फलस्वरूप वह अपनी अवस्थानुसार अच्छे कार्यों को कर सके और कुसंगति के विकराल पंजों से अपनी रक्षा कर सके। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता तो शीघ्र ही कुसंगति के गर्त में गिर जाता है। ऐसे व्यक्ति का समाज में बिलकुल आदर नहीं होता है। उसके कुकर्म उसके जीवन के लिए शूल बन जाते हैं। फिर वह गले सड़े हुए फल के समान ही अपने जीवन का अंत कर डालता है।
अतः प्रत्येक मानव को कुसंगति से बचना चाहिए। उसे प्राकृतिक रूप में अच्छाई बसई, धर्म-अधर्म, ऊँच-नीच, सत्यअसत्य और पाप-पुण्य को बारीक दृष्टि से पहचानना चाहिए और उनमें से ऐसे तत्वों को ग्रहण करना चाहिए जिनके बल पर उसका जीवन सार्थक बन सके। इस निश्चय के बाद ही मानव को अपने जीवन की राह पर अबिरल मति से अग्रसर होना चाहिए। सत्संगति ही उसकी सच्ची राह को प्रदर्शित करती है। उस पर चलता हुआ मानव देवताओं की श्रेणी में पहुँच जाता है। इस राह पर चलने वाले के सामने कोई भी रोड़ा बनकर नहीं आ सकता और उसे किसी तरह के प्रलोभन विचलित नहीं कर सकते।
कुसंगति काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ–बुधि भ्रष्ट करने वालों की जननी है। इसके झण सत्संगति का अनुकरण करने काले को अपने पार्क में फँसाने का प्रयास करते हैं। महाबली भीष्म, आचार्य गुरु द्रोण और महारथी कर्ण जैसे महापुरुष भी कुसंगति के मोहजाल में फँसकर पथ से विचलित हो गए थे। उनके आदर्शों का समूल हनन हो गया था। अत: प्रत्येक मानव को चाहिए कि वह चंदन के वृक्ष के समान अटल रहे। जिस प्रकार विषधर दिन-रात लिपटे रहने पर भी उसे विष से प्रभावित नहीं कर पाते हैं उसी प्रकार सत्संगति के पथगामी का कुसंगति वाले कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हैं।
सत्संगति कुंदन है। इसके मिलने से काँच के समान मानव हीरे के समान चमक उठता है। अत: प्रगति की एकमात्र सोपान सत्संगति ही है। मानव को सज्जन पुरुषों के सत्संग में रहकर ही अपनी जीवन-नौका को समाज रूपी सागर से पार लगाना चाहिए तभी वह सच्चे सम्मान का अधिकारी बन सकता है।
हम आशा करते हैं कि आप इस निबंध ( Satsangati Essay in Hindi Language – सत्संगति पर निबंध ) को पसंद करेंगे।
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