Here you will get Paragraph and Short Essay on Atithi Devo Bhava in Hindi Language for School Students and Kids of all Classes in 200, 500 and 600 words. यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में अतिथि देवो भव पर निबंध मिलेगा।
Essay on Atithi Devo Bhava in Hindi – अतिथि देवो भव पर निबंध
Short Essay on Atithi Devo Bhava in Hindi Language – अतिथि देवो भव पर निबंध (200 words)
अतिथि देवो भव का अर्थ होता है कि मेहमान देवता के समान होते हैं। हमें उनका आदर सत्कार करना चाहिए। प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में अतिथि को भगवान का रूप माना जाता है और उनका पूर्ण सम्मान किया जाता है। माना जाता है कि किसी मेहमान के रूप में भगवान ही हमारे घर आते हैं। घर आने वाले अतिथि हमारे रिश्तेदार, सगे संबंधी, पड़ोसी और दोस्त भी हो सकते हैं। उनके आने पर हम उनकी सेवा देवता की तरह करते हैं। उनके खान पान से लेकर उनके रहने तक की सब व्यवस्था अच्छे से की जाती है।
कुछ लोगों का मानना है कि अतिथि तो अच्छे भाग्यों वाले के घर ही आते हैं। मेहमान अपने साथ ढेर सारी खुशियाँ भी लेकर आते हैं। अतिथि का कभी भी निरादर नहीं करना चाहिए क्योंकि उनका निरादर भगवान के अपमान के समान है। अतिथि पर हँसने से उनका श्राप लगता है। अतिथि भाव का भूखा होता है न कि संपत्ति का। वह हमारे घर थोड़े समय के लिए ही आते हैं इसलिए उन्हें संतुष्ट रखने में हमें कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए। अतिथि का सम्मान यानि कि भगवान का सम्मान करना है। अतिथि को हमेशा प्रसन्न रखें।
Atithi Devo Bhava Essay in Hindi Language – Essay on Atithi Devo Bhava in Hindi – अतिथि देवो भव पर निबंध ( 500 words )
अतिथि का मतलब यह होता है कि हमारे रिश्तेदार हमें मिलने आए या फिर कोई दूसरी वजह के लिए आए तो उसे अतिथि कहा जाता है । भारत की संस्कृति में अतिथि को देव की तरह माना गया है । यदि हमारे घर पर कोई दुश्मन भी आ जाए तो भी वह हमारे लिए अतिथि होता है । जो कोई भी इंसान अतिथि के रूप में हमारे पास आता है, वह हमारे लिए भगवान के समान होता है और हमें अपने अतिथि के साथ उसी तरह से व्यवहार करना चाहिए, जैसे भगवान हमारे घर पर आए हो । वाल्मीकि ऋषि के अनुसार अतिथि सत्कार से बढ़कर दूसरा कोई भी महान धर्म नहीं है, अतिथि से महान कोई देवता नहीं है ।
भारतीय संस्कृति में अतिथि सत्कार को अतिथि यज्ञ कहां गया है । भारत के पंच महायज्ञ में भी अतिथियज्ञ का समावेश किया गया है । अतिथि देवो भव: वह हमारी संस्कृति है । घर के द्वार पर आए अतिथि का यथा योग्य स्वागत सत्कार करना हमारी परंपरा मैं कर्तव्य ही नहीं बल्कि धर्म माना गया है । संसार के किसी भी देश की संस्कृति में अतिथि सम्मान की ऐसी भावना एवं सभ्यता देखने को नहीं मिलती है । कभी भी अतिथि की जाति,आश्रम, अवस्था ओर योग्यता नहीं देखनी चाहिए क्योंकि अतिथि तो भगवान के समान होते है.
कृष्ण ने किया सुदामा का – अतिथि सत्कार
जब सुदामा के पास बच्चों को खाना खिलाने के लिए कोई भी चीज नहीं थी तो वे कृष्णा के दरबार में गए थे । श्री कृष्ण ने महल के अंदर सुदामा को आते ही गले लगा लिया था, उसके बाद सुदामा को अतिथि की तरह पूजा की गई थीं । सुदामा को बहुत ही सम्मान के साथ महल के अंदर लाए गए, उसके बाद 52 भोग के भोजन खिलाए गए थे, उनको नए-नए वस्त्र दिए गए । कृष्णा ने खुद अपने हाथों से सुदामा को झूला झुलाया था । कृष्ण की राजगाद्दी पर सुदामा को बिठाया गया था । इस तरह श्री कृष्ण ने सुदामा की भगवान की तरह सेवा की थी ।
आज के युग में अतिथि देवो भवः
आज के युग में भी अतिथि को भगवान की तरह ही पूजा जाता है । शहरों में अतिथि की भावना थोड़ी सी कम हो रही है लेकिन गांवों में तो अतिथि की भावना उल्टा बढ़ चुकी है । आज यदि कोई रिश्तेदार आता है तो उसकी सबसे पहले पूजा की जाती है,उसको अच्छा अच्छा 52 भोग का खाना खिलाते हैं । श्री कृष्ण ने सुदामा की जैसे सेवा की थी वैसे ही रिश्तेदारों की गांवों में भी सेवा की जाती है । यदि घर पर कोई भी मेहमान आता है तो सभी लोग उसके आने से खुश हो जाते हैं, यदि उसके पास पहनने के लिए वस्त्र नहीं है तो उसे वस्त्र दिए जाते हैं ।
श्रीमद भगवत गीता में अतिथि देवो भव: का मतलब;
श्लोक
मातृदेवो भव । पितृदेवो भव । आचार्य देवो भव ।
अतिथिदेवो भव । यानयनवधानि कर्माणि,
तानी सेवितवयानि, ना इतरानी ।,
यान्यस्माक सूचीरितानी, तानी त्वयोपास्थानी,नो इतराणि ।
श्लोक का अर्थ
माता देवता के समान पूजनीय हो । पिता देवता के समान पूजनीय हो । आचार्य देवता के समान आदरणीय हों । अतिथि (जिसके आने की कोई तिथि ना हो ) देवता के समान सम्मानीय हो । जितने निर्दोष उत्तम कर्म है, वे सेवन करने चाहिए । दूसरे, पाप कर्म या दुष्कर्म नहीं करने चाहिए । जितने हमारे शुभ आचरण है, तुझे वे धारण करने चाहिए ।
Essay on Atithi Devo Bhava in Hindi Language – अतिथि देवो भव पर निबंध ( 600 words )
“अतीथी देओ भव” – संस्कृत में एक कहती है जिसका मतलब है कि अतिथि भगवान की तरह है। हमारे लिए भारतीय यह सिर्फ एक कथन नहीं है, बल्कि जीने के लिए एक सिद्धांत है। हमें अपने मेहमानों को लाड़ करना और उन्हें अत्यंत सावधानी से व्यवहार करने के लिए सिखाया जाता है। अतिथि को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं होने तक कोई मेजबान नहीं रहना चाहिए और उन्हें बेहतरीन तरीके से सर्वश्रेष्ठ भोजन दिया जाता है। मैं इन मूल्यों से घिरा हुआ हूं, इसलिए आतिथ्य मेरे खून में चलता है।
मुझे बचपन से ही खाना बहुत पसंद है। न सिर्फ अच्छा भोजन खा रहा है, बल्कि खाना पकाने, नए प्रकार के व्यंजनों का प्रयोग करने और उन्हें परिवार और दोस्तों की सेवा करने का अवसर प्रदान करता है। मेरी दादी की मदद से बच्चे के रूप में छोटी ब्रेड बनाते हैं, अपने दोस्तों के लिए पूरे भोजन और जन्मदिन का केक खाना पकाने के लिए, खाना पकाने के लिए मेरा जुनून कई गुना बढ़ गया है भोजन मुझे उत्तेजित करता है, यह मुझे खुश करता है। मुझे अपने घर के चारों ओर फैली हुई सूंघों को गंध करना पसंद है, जो एक स्वादिष्ट चिकन करी के बर्तन पर पकाया जाता है। मैं कुकरी चैनल देखकर घंटे बिताता हूं और कुछ चुनौतीपूर्ण, अभी तक स्वादिष्ट बनाने के लिए व्यंजनों के लिए इंटरनेट का परिमार्जन करता हूं। भारत में एक बहुत विविध खाद्य संस्कृति होती है जो एक शहर से दूसरे में बदलती रहती है और बदलती है।
जैसा कि मेरे पिता सेना में थे, मैं रहता था और भारत के लगभग सभी क्षेत्रों की यात्रा की थी और भारतीय रसोई में बने चमत्कारों को देखा है! अलग मसाले, ब्रेड, करी, अचार, फलों, सब्जियां, सड़क के भोजन और अमीर मिठाई भी एक पूर्ण पेट बनाने के लिए अधिक चाहते हैं। मैं विविधता के स्वाद का अनुभव करने के लिए भाग्यशाली महसूस करता हूं। मैं दिल्ली में रहता हूं, जो भारत की राजधानी है, जो दुनिया भर से संस्कृतियों का गलनांक है। दिल्ली में रहने के लिए धन्यवाद, मुझे मध्य पूर्व, सुदूर पूर्व, भूमध्यसागरीय और दक्षिण और उत्तर अमेरिका के व्यंजनों का आनंद लेने का शानदार अवसर मिला है। मैं घर पर चुरस भी बना सकता हूं और सुशी और सशिमी के बीच अंतर कर सकता हूं।
मैं लोगों के साथ संचार करने में बहुत कुशल हूं और विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ अच्छी तरह कनेक्ट कर सकता हूं। मनोविज्ञान, मेरे पसंदीदा विषय ने मुझे यह समझने के लिए सिखाया है कि लोग कैसे व्यवहार करते हैं, उनकी ज़रूरतों का आकलन कैसे करते हैं और उन्हें किस चीज को खुश करते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से कई श्रेणियों में मेहमान होने का अनुभव किया है, शीर्ष वर्ग से मितव्ययिता के लिए और मैंने बहुत ध्यान से देखा और महसूस किया है कि किसी को बेहतरीन सेवाएं प्रदान करने के लिए कितना प्रयास होता है मैंने इन अनुभवों के माध्यम से बहुत कुछ सीखा है मुझे एहसास हो गया है कि मानव स्पर्श और गर्मी है जो साधारण से सबसे अच्छा अंतर है।
मुझे लगता है कि मेरे परवरिश के साथ भोजन और सेवा के लिए मेरा जुनून मुझे कॉर्नेल स्कूल ऑफ़ होटल प्रशासन के लिए आदर्श बनाता है। यह एक अग्रणी संस्था है जो मुझे इस क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए आवश्यक सर्वोत्तम शिक्षा और अनुभव प्रदान कर सकती है। मुझे इस संस्थान की महिमा लाने की आशा है जब मैं किसी दिन अपने खुद के रेस्तरां को शुरू करता हूं और मेरे मेहमानों के दिल और आत्मा को अति उत्तम व्यंजन प्रदान करता हूं।
हम आशा करते है की आप इस निबंध ( Atithi Devo Bhava Essay in Hindi Language – Essay on Atithi Devo Bhava in Hindi – अतिथि देवो भव पर निबंध ) को पसंद करेंगे।
More Articles:
Essay on Basant Panchami in Hindi – बसंत पंचमी पर निबंध
Essay on Navratri in Hindi – नवरात्रि पर निबंध
Essay on Spring Season in Hindi – बसन्त ऋतु पर निबंध
Rain Water Harvesting Essay in Hindi – वर्षा जल संचयन पर निबंध