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Essay on Holi Festival in Hindi – होली पर निबंध
Essay on Holi Festival in Hindi – होली पर निबंध (500 words)
भारत में हर वर्ष कई त्योहार मनाए जाते हैं। वे त्योहार न केवल भारत की सभ्यता ऐव संस्कृति की झलक देते हैं। अपितु जन- जन का मन नव स्फूर्ति ऐव चेतना से भर देते हैं। भारत में नई स्फूर्ति लाने वाला त्योहार है होली। इसे रंगों का त्योहार कहते हैं। इस दिन स्कूल, कालिक, दफ़्तर आदि बन्द होते हैं। वसन्त ऋतु का स्वागत करने वाला यह त्योहार फागुन मास में अपने अनुमत सौंदर्य के साथ लोगों को उल्लास से भर देता है। यह प्रेम और एकता बढ़ाने वाला त्योहार पूरे भारत में धूम- धाम से मनाया जाता है। वसन्त ऋतु का संदेशवाहक – वसन्त ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है।
उसमें न अधिक सर्दी होती है और न ही गर्मी। प्रकृति का मनोरम स्वरूप इस ऋतु में मिलता है। खेतों में सरसों के पीले-पीले फूल प्रकृति नटी को पीली साढी से आच्छादित कर देते हैं। सरोवरों में खिले श्वेत कमल आँखों को बड़े मनमोहक लगते हैं। शीतल, मन्द सुगन्ध वायु पर्यटकों ऐव भ्रमण करने वालों के मनों को अनायास मंत्र मुग्ध कर देती है। वन, उपवन में खिले रंग बिरंगे फूल, आम्र वृक्षों की शाखाओं पर भँवरे और कृष्ण कोयल की कूक हृदयों को आह्लादिन कर देती हैं। ऐसे वातावरण में फाल्गुन मास में होली का त्योहार, वसन्त ऋतु का त्योहार, धूम- धाम से मनाया जाता है।
क्यों मनाया जाता है – इस रंगों के त्योहार “होली” का धार्मिक महत्व भी है। दानव नरेश हिरनयकश्यपु इतना क्रूर ऐव अत्याचारी राजा था कि डर के कारण लोग उसे भगवान की तरह पूजते थे। किन्तु इसका पुत्र प्रह्लाद जो ईश्वर भक्त था उससे ज़रा भी नहीं डरता था। नाना प्रकार के मारने के प्रयास जब हिरण्यकाशपु से असफल हो गए तो उस पापी राजा ने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को जलाने के लिए सहयोग माँगा। होलिका को अग्निदेव से आग न लगने का वरदान प्राप्त था। फाल्गुन मास के इसी दिन होलिका प्रह्लाद को आग में लेकर बैठ गई। भगवान का भक्त प्रह्लाद तो बच गया परन्तु दुष्ट होलिका जल गई। सत्य की असत्य पर जीत हुई। इसी शिक्षा को दोहराने के लिए हर वर्ष यह त्योहार मनाया जाता है।
कैसे मनाया जाता है – होली के दिन ख़ूब ख़ुशियाँ मनाई जाती हैं। परन्तु इसकी पूर्व सन्ध्या को होली का पूजन किया जाता है और रात्रि में समयानुसार आग जलाई जाती है। इस आग में गेहूँ की बालें भी डाली जाती हैं। इससे अगले दिन लोग ख़ूब रंग खेलते हैं। लोग एक दूसरे के गले मिलते हैं और गुलाल एक दूसरेके मुँह पर लगाते हैं। चारों और शोर सुनाई देता है। भजन कीर्तन होते हैं। ख़ूब हास – परिहार होता है। मथुरा में तो “होली” का त्योहार देखने योग्य होता है। दोपहर तक यह शोर गुल रहता है। शाम को नए वस्त्र पहन कर लोग एक दूसरे के घर जाते हैं। संस्कृति कार्यक्रम होते हैं। सब धर्मों के लोग एक दूसरे के समीप आते हैं।
उपसंहार – रंगो का यह त्योहार लोगों के मनों में एक नया उल्लास भर जाता है। लोग नवीनता ऐव हर्ष का अनुभव करते हैं। इस अवसर पर रूठो को मनाया जाता है। हिन्दु और मुसलमान लोगों को एक दूसरे के गले मिलता देख मन में एक अनुपम सुख का अनुभव होता है। प्रेम और एकता बढ़ाने वाले इस त्योहार को हर वर्ष धूम – धाम से मनाना चाहिए।
Essay on Holi Festival in Hindi – होली पर निबंध (600 words)
हमारे देश में होली का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने में प्रत्येक भारतीय अपना गौरव समझता है। एक ओर तो आनंद और हर्ष की वर्षा होती है, दूसरी ओर प्रेम व स्नेह की सरिता उमड़ पड़ती है। यह शुभ पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के सुंदर अवसर की शोभा बढ़ाने आता है। | होली का त्योहार वसंत ऋतु का संदेशवाहक बनकर आता है। मानव मात्र के साथ-साथ प्रकृति भी अपने रंग-ढंग दिखाने में कोई कमी नहीं रखती। चारों ओर प्रकृति के रूप और सौंदर्य के दृश्य दृष्टिगत होते हैं।
पुष्पवाटिका में पपीहे की तान सुनने से मन मयूर नृत्य कर उठता है। आम के झुरमुट से कोयल की ‘कुहू-कुह’ सुनकर तो हदय भी झंकृत हो उठता है। ऋतुराज वसंत का स्वागत बड़ी शान से संपन्न होता है। सब लोग घरों से बाहर जाकर रंग-गुलाल खेलते हैं और आनंद मनाते हैं।होलिकोत्सव धार्मिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। इस उत्सव का आधार हिरण्यकश्यप नामक दानव राजा और उसके ईश्वरभक्त पुत्र प्रह्लाद की कथा है। कहते हैं कि राक्षस राजा बड़ा अत्याचारी था और स्वयं को भगवान मानकर प्रजा से पूजा करवाता था; किंतु उसी का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का अनन्य भक्त था। हिरण्यकश्यप चाहता था कि मेरा पुत्र भी मेरा नाम जपे किंतु वह इसके विपरीत उस ईश्वर का नाम ही जपता था।
उसने अपने पुत्र को मरवा डालने के बहुत से यत्न किए, पर असफलता ही मिली। एक बार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने इस कुकृत्य में अपने भाई का साथ देने का प्रयास किया। उसे किसी देवता से वरदान में एक ऐसा वस्त्र प्राप्त था जिसे ओढ़कर उसे आग नहीं लग सकती थी। एक दिन होलिका प्रह्लाद को गोदी में लेकर चिता में बैठ गई। किंतु भगवान की इच्छा कुछ और ही थी, किसी प्रकार वह कपड़ा उड़कर प्रह्लाद पर जा पड़ा। फलत: होलिका तो भस्म हो गई और प्रह्लाद बच गया। बुराई करने वाले को उसका फल मिल गया था। इसी शिक्षा को दोहराने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है।
इस दिन खूब रंग खेला जाता है। आपस में नर-नारी, युवा-वृद्ध गुलाल से एक-दूसरे के मुख को लाल करके हँसी-ठट्ठा करते हैं। ग्रामीण लोग नाच-गाकर इस उल्लास-भरे त्योहार को मनाते हैं। कृष्ण-गोपियों की रास-लीला भी होती है। धुलेंडी के बाद संध्या समय नए-नए कपड़े पहनकर लोग अपने मित्रगणों से मिलते हैं, एक-दूसरे को मिठाई आदि खिलाते हैं और अपने स्नेह-संबंधों को पुनर्जीवित करते हैं।
होली के शुभ अवसर पर जैनी भी आठ दिन तक सिद्धचक्र की पूजा करते हैं, यह ‘अष्टाहिका’ पर्व कहलाता है। ऐसे कामों से इस पर्व की पवित्रता का परिचय मिलता है। कुछ लोग इस शुभ पर्व को भी अपने कुकर्मों से गंदा बना देते हैं।
कुछ लोग इस दिन रंग के स्थान पर कीचड़ आदि गंदी वस्तुओं को एक दूसरे पर फेंकते। हैं अथवा पक्के रंगों या तारकोल से एक-दूसरे को पोतते हैं जिसके फलस्वरूप झगड़े भी हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोग इस दिन भाँग, मदिरा आदि नशे की वस्तुओं का भी प्रयोग करते हैं जिनके परिणाम कभी भी अच्छे नहीं हो सकते। ऐसे शुभ पर्व को इन बातों से अपवित्र करना मानव धर्म नहीं है।
होलिकोत्सव तो हर प्राणी को स्नेह का पाठ सिखाता है। इस दिन शत्रु भी उत्सवों से दुश्मनी पैदा हो तो उत्सव मनाने का लक्ष्य नष्ट हो जाता है। इसलिए होली खेलने वालों को चाहिए कि व्यक्ति पर रंग न डालें जो बुरा माने। आज भारत स्वतन्त्र है, इसलिए राष्ट्रीय त्योहार के रूप में इसे मनाना चाहिए। दुश्मनी भुलाकर प्रेम के रंग में सबको रंग डालना चाहिए। वस्त्रों के साथ पवित्र प्रेम से हृदय भी रंग दिया जाए तो इस त्योहार को मनाना सफल होगा।
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