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Guru Nanak Dev Ji History in Hindi – गुरु नानक देव जी की जीवनी
Guru Nanak Dev Ji History in Hindi – गुरु नानक देव जी की जीवनी
गुरु नानक का जन्म 1469 ई० में ज़िला शेखपुरा के तलवण्डी नामक ग्राम में ( जिसे अब ननकाना साहब कहते हैं और जो अब पाकिस्तान में है ) हुआ। इनके पिता जी श्री कालू चन्द और माता तृप्ता थी। बचपन से ही इनका झकाव ईश्वर भवित की ओर था। बचपन में इनके खेल भी ऐसे होते थे जिनसे ईश्वर-भवित का उपदेश मिलता था। इन्हें जब गुरु के पास संस्कृत और फ़ारसी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा गया तो गुरु इन्हें कुछ न सिखा पाया । उलटा इन्होंने उन्हें अध्यात्म ज्ञान की शिक्षा दी। महात्मा बुद्ध की तरह ये भी बचपन से ही संसार से विरक्त थे।
15 वर्ष की आयु में इनके पिता ने इन्हें कुछ रुपए देकर व्यापार करने के लिए भेजा। इन्हें मार्ग में कुछ साधु मिल गए। गुरु नानक ने उन रुपयों से उन्हें भोजन करवाया और अपने गांव में लौट आए। उन्होंने आकर बताया कि वे सच्चा सौदा कर आए हैं।
इनको सांसारिक मोह-माया में लगाने के लिए उनकी बहन ने बड़ा प्रयत्न किया। जब ये 21 वर्ष के हुए तब इनकी बहन नानकी इन्हें अपने साथ सुल्तानपुर ले गई। यहां इन्हें नवाब दौलत अली खान के मोदी-खाने में नौकर करवा दिया गया। यहां पर भी इनका ध्यान नौकरी में न लगा। हर समय ईश्वर-भक्ति में लीन रहते थे और अनाज ज्यादा तोल कर दे देते थे। कहते हैं कि एक बार अनाज तोलते-तोलते वे तेरह की गिनती पर पहुंचे। उन्होंने तेरा-तेरा करते हुए सारा ही अनाज तोल कर दे दिया।
गुरु नानक को गृहस्थी में लगाने के लिए उनका विवाह मूल चन्द की पुत्री के साथ हो गया। इनके दो पुत्र हुए-श्री चन्द और लक्ष्मी दास । विवाह एवं सन्तान भी उन्हें प्रभावित नहीं कर सके। जब गुरु नानक प्रथम उदासी पर जाने लगे तो उनकी बहन ने गुरु नानक के बच्चों को आगे कर दिया ताकि उनके मोह में फंस कर वे रुक जाएं। परन्तु वे बच्चों का मोह त्याग कर चले गए। उनका मन भगवान् की भक्ति में लगा रहा।
30 वर्ष की अवस्था में उन्होंने गृह त्याग दिया। उन्होंने फकीरी धारण कर ली और बाला तथा मर्दाना के साथ देश-विदेशों की यात्रा पर निकल पड़े। इनकी इन यात्राओं को उदासियां कहते हैं। इन्होंने चार यात्राएं कीं जो चार उदासियां कहलाती हैं। चौथी यात्रा में ये मक्का और मदीना गए। यहां पर उन्होंने मुसलमानों को भी यह उपदेश दिया कि ईश्वर सर्वत्र व्यापक है। इसके पश्चात् वे करतारपुर लौट आए और आयु का शेष भाग यहीं बिताया।
इन्होंने जात-पात का खण्डन किया । बाहरी दिखावों का विरोध किया। वे सभी मनुष्यों को समान समझते थे। इनका मूर्ति-पूजा में विश्वास नहीं था। वे निराकार भगवान् की पूजा करते थे। इनका विश्वास था कि परमात्मा का अपना कोई भी रूप नहीं है । फिर संसार में दष्यमान सभी परमात्मा का ही रूप हैं । इसलिए वे परमात्मा को बाहर नहीं, अपने में ही ढूंढने का उपदेश देते थे। वे काम करने और बांट कर खाने के सिद्धांत में विश्वास करते थे। वे हिंसा के विरुद्ध थे । मांस खाना वे उचित नहीं समझते थे। उनके अनुसार यदि वस्त्र पर रक्त की बूद लगने से वस्त्र अपवित्र हो जाता है तो उन लोगों के मन की क्या दशा होती है जो मांस खाते हैं। बाद में उनके अनुयायी (शिष्य) सिक्ख कहलाए। 70 वर्ष की आयु में अपने अपना शरीर त्यागा।
हमें उम्मीद है कि आप इस लेख ( Guru Nanak Dev Ji History in Hindi – गुरु नानक देव जी की जीवनी ) को पसंद करेंगे।
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