यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में महात्मा गांधी पर भाषण मिलेगा। Here you will get Long and Short Speech on Mahatma Gandhi in Hindi Language for students of all Classes in 300 and 700 words.
Speech on Mahatma Gandhi in Hindi – महात्मा गांधी पर भाषण
Short Speech on Mahatma Gandhi in Hindi Language – महात्मा गांधी पर भाषण (300 Words)
जन्म एवं शिक्षा – राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का पूरा नाम मोहनदास कर्मचन्द गाँधी था। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 में गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान में हुआ। उनके पिता रियासत के दीवान थे। उन्हें सदाचार की शिक्षा माता पुतली बाई जी से मिली थी। तेरह वर्ष की अवस्था में उनका विवाह कस्तूरबा जी से हो गया था। वे मैट्रिक की परीक्षा उतीर्ण करने के बाद सन् 1887 में वकालत की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड गए थे।
कार्य –
गांधी जी ने स्वदेश लौटने पर वकालत शुरू की। सन् 1890 ई. में एक मुस्लिम व्यापारी का मुकद्दमा लड़ने के लिए वे दक्षिणी अफ्रीका गए। वहाँ पर उन्होंने भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों के विरोध में अवाज उठाई। सन् 1894 ई. में उन्होंने ‘नेटाल कांग्रेस की नींव डाली। गोरों के विरूद्ध किए गए सत्याग्रहों और आंदोलनों में उन्हें सफलता मिली। भारत लौट कर उन्होंने अपने भाषणों से स्वतन्त्रता आंदोलन को हवा दी। ‘स्वदेशी वस्तुएँ अपनाओ के सिद्धांत को लेकर उन्होंने सन् 1921 में ‘असहयोग आन्दोलन’चलाया। सन् 1930 में ‘नमक कानून’ का विरोध किया और सन् 1942 में उन्होंने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया। उन्हें कई बार सरकारी मेहमान बनना पड़ा अर्थात जेल जाना पड़ा उनके सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों ने अंग्रेजी राज्य की नींव हिला दी। अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना पड़ा। 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश स्वतन्त्र हो गया। उन्होंने हिन्दु-मुस्लिम एकता और अछूतोद्धार के लिए आवाज़ उठाई।
मृत्यु – युग पुरूष गाँधी जी 30 जनवरी, 1948 की संध्या को बिड़ला भवन में प्रार्थना सभा में जा रहे थे तभी नत्थूराम गोडसे नामक एक हत्यारे ने गोलियां मार कर उनकी हत्या कर दी। उनकी समाधि राजघाट पर बनी हुई है। हमें अपने प्रिय नेता जी के पदचिन्हों पर चलना चाहिए।
Speech on Mahatma Gandhi in Hindi – महात्मा गांधी पर भाषण (700 Words)
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से भारत का बच्चा-बच्चा परिचित है। वे सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। उनकी वाणी में जादू था जिससे सारा विश्व प्रभावित हुआ। हम भारतवासी इन्हीं के प्रताप से आज स्वतंत्रता की साँस ले रहे हैं। वास्तव में महात्मा गांधी जैसी महान विभूतियाँ ही समय-समय पर विश्व में अवतरित होकर कष्टों से मुक्त दिलाती हैं। अंग्रेजों के शासनकाल में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारतीयों पर दमनचक्र चला, जिसने हमें निस्तेज बनाकर बिलकुल पंगु-सा बना दिया था। सभ्यता और संस्कृति का ह्रास हो चुका था। ऐसे समय में मोहनदास कर्मचंद गांधी गुजरात में पोरबंदर नामक स्थान में पुतलीबाई की कोख से 2 अक्टूबर सन 1869 ई. को जन्म लिया।
प्रारंभिक जीवन:
अभी ये युवा भी न हुए थे कि तेरह वर्ष की अल्पायु में ही पिता कर्मचंद गांधी ने कस्तूरबा के साथ इनका विवाह कर दिया। उन्नीस वर्ष की अवस्था में बैरिस्ट्री की शिक्षा के लिए जब विलायत जाने लगे तो माता पुतलीबाई ने मदिरा, मांस आदि का सेवन न करने का उपदेश दिया था। इन्होंने जीवन-भर माता के आदेश का पालन किया। ये सन 1891 ई. में बैरिस्ट्री पास कर भारत लौटे। | इन्होंने बम्बई में वकालत आरंभ की जिसमें इन्हें अच्छी सफलता नहीं मिली। सफलता न मिलने का कारण यह था कि मुकदमे झूठे आते थे और ये झूठे मुकदमों से दूर रहना चाहते थे। उन्हीं दिनों इन्हें किसी व्यापारिक संस्था के मुकदमे की पैरवी करने के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वह मुकदमा तो गांधीजी ने जीत लिया पर इसके साथ ही इनकी जीवनदिशा भी मुड़ गई।
अफ्रीका में कालों के प्रति गोरों का व्यवहार शोचनीय एवं असंतोषजनक था। गांधीजी ने ऐसे दुर्व्यवहार के प्रति आवाज़ उठाई। उनमें आत्मविश्वास की भावना जाग उठी, उनका दृष्टिकोण असांप्रदायिक हो गया और वे रंगभेद की परिभाषा को मानने से इनकार कर उठे। वहीं रहकर सन 1894 ई. में उन्होंने नेशनल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। अफ्रीका में 8 वर्ष तक सत्याग्रह आंदोलन चलता रहा जिसका अंत पर्याप्त अच्छे रूप में सन 1914 ई. में हुआ।
गांधीवादी प्राचार्य:
गांधीजी जब भारत लौटे तब प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ चुका था। इसमें भारत द्वारा अंग्रेजों की धन-जन से सहायता की गई पर उन्होंने स्वराज्य का वचन देकर भी अँगूठा दिखा दिया। गांधीजी ने साहस नहीं छोड़ा। वे स्वराज्य की राह पर चलते रहे। उनके सन 1920 और 1930 के आंदोलनों से अंग्रेज़ काँप उठे। भारत में भी छुआछूत देखकर गांधीजी का चित्त अत्यंत व्याकुल हुआ। इसको मिटाने के लिए भी आंदोलन चलाना पड़ा जिसमें सफलता ने उनके पग चूमे। बहुत से मंदिरों में अंतों का प्रवेश हो गया। फिर वे ग्रामों के सुधार में लगे। सन 1937 ई. में कांग्रेस का शासन हुआ। उन्हीं दिनों वर्धा-शिक्षा योजना का श्रीगणेश हुआ। सितंबर, 1939 ई. में जरमन और अंग्रेजों का युद्ध छिड़ गया जिसमें भारतीयों की सहमति लिए बिना ही भारतीय सेना ब्रिटेन की रक्षा के लिए भेज दी गई। इससे राष्ट्रीय नेता बिगड़ उठेऔर उन्होंने असेंबली हाउस त्याग दिया। 16 अक्तूबर, सन 1940 ई. को पुनः आंदोलन चलाना पड़ा। राष्ट्रीय नेताओं को बंदी बना लिया गया।
सन 1942 में राष्ट्र में क्रांति हुई जिसमें लाखों भारतीयों का बलिदान हुआ। फिर भी गांधीजी का कार्य चलता रहा। तभी नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारत से बाहर ‘आज़ाद हिंद सेना‘ बनाकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। इससे अंग्रेजों के पैर डगमगा गए। जापान के शस्त्र डालने पर आजाद हिंद सेना के सैनिकों को कारागार में ढूंस दिया गया, जिन्हें कांग्रेस नेताओं ने छुड़वाया था। नेताजी विमान दुर्घटना के शिकार हो गए। अंत में अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। 15 अगस्त, सन 1947 ई. को देश स्वतंत्र हुआ किंतु खेद की बात यह हुई कि भारत के दो टुकड़े हुए। देश में जहाँतहाँ दंगे हुए। अनेक निर्दोषों को काल के गाल में जाना पड़ा। धन-जन की बड़ी क्षति हुई। नेताओं के दिल काँप गए; किंतु गांधीजी का साहस अडिग था, वे सबको अहिंसा का पाठ पढ़ाते रहे। राम और रहीम को एक मानकर वे इस पद का कीर्तन कराया करते थे।
‘ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान।‘
मानवता, शांति और अहिंसा का यह देवता हमारे सांप्रदायिक उन्माद पर बलिदान हो गया। 30 जनवरी, सन 1948 ई. संध्या के पाँच बजे नाथूराम गोडसे ने प्रार्थनासभास्थल पर गांधीजी पर तीन गोलियाँ दाग दीं और ‘हे राम‘ कहते हुए गांधीजी चिरनिद्रा में सो गए। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार राजघाट पर सम्मानपूर्वक किया गया। वहीं पर गांधीजी की समाधि बनी हुई है।
निष्कर्ष : राष्ट्रपिता गांधीजी का जीवन देश को स्वतंत्र कराने, अछूतोद्धार, ग्रामसुधार और हिंदू-मुसलिम एकता को स्थापित करने में व्यतीत हुआ था। अतः उनके आदर्शों को अपनाकर हमें उनके अधूरे कार्यों को पूर्ण करना चाहिए-यही हमारी राष्ट्रपिता के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
हम आशा करते हैं कि आप इस भाषण ( Speech on Mahatma Gandhi in Hindi – महात्मा गांधी पर भाषण ) को पसंद करेंगे।
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