Get information about Kho Kho in Hindi Language. Here you will get Paragraph and Short Essay on Mera Priya Khel Kho Kho in Hindi Language/ Short Essay on Kho Kho in Hindi Language for students of all Classes in 250, 300 and 500 words. यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में खो- खो पर निबंध मिलेगा।
Essay on Mera Priya Khel Kho Kho in Hindi – खो- खो पर निबंध
Essay on Mera Priya Khel Kho Kho in Hindi – खो- खो पर निबंध ( 250 words )
खो खो भारत का एक लोकप्रिय खेल है जो कि किसी भी तरह के समतल पर खेला जा सकता है। यह एक मैदानी खेल है और इसका जन्मस्थल बड़ैदा को माना जाता है। आज के समय में यह गुजरात, राज्यस्थान महाराष्ट्र आदि में भी खेला जाता है। यह खेल चुस्ती और दिमागी चालों से भरपूर है। इसका मैदान 111 फीट लंबा और 51 फीट चौड़ा होता है। इसमें दोनों तरफ दस दस फीच जगह छोड़कर दो खंभे लगते हैं जिनसे बाहर व्यक्ति किसी भी दिशा में भाग सकता है। खो खो में दो टीम होती है और हर टीम में नौ सदस्य होते हैं। इसमें से एक टीम दौड़ती है जिसमें एक बार में तीन सदस्य ही मैदान में आते हैं और दुसरी टीम मैदान में बनी लाईनों में बैठती है।
कोई भी दो व्यक्ति एक साथ एक तरफ मुहँ करके नहीं बैठ सकते हैं। धावक कहीं भी दौड़ सकता है लेकिन प्रतिरक्षक को एक ही दिशा में भागना होता है और पॉल पर पहुँचकर वह दिशा बदल सकता है। प्रतिरक्षक सिर्फ पीठ की तरफ से अपने साथी को हाथ लगाकर और खो बोलकर उसे दौड़ने को कह सकता है और खुद उसके स्थान पर बैठ जाता है। खो खो का खेल पहले चरण में नौ मिनट का होता है फिर 5 मिनट का ब्रेक का होता है। उसके बाद नौ मिनट के दुसरो चरण में दौड़ने वाली टीम बैठती है और बैठी हुई टीम को अब दौड़ना होता है।
Kho Kho Essay in Hindi – Essay on Mera Priya Khel Kho Kho in Hindi ( 300 words )
भारत खेलों का देश है यहाँ पर बहुत सारे खेल खेले जाते हैं। खो- खो एक मैदानी खेल है जिसका जन्म बड़ौदा में हुआ था। यह गुजरात और महाराष्ट्र में मुख्य रूप से खेला जाता है पर अब इसका प्रचलन बाकि प्रदेशों में भी बढ़ गया है। खो-खो के खेल के लिए दो खंबो की जरूरत होती है और यह किसी भी तरह के समतल पर खेला जा सकता है। खो खो के खेल को पुरूष और महिलाएँ दोनों ही खेल सकते हैं। यह चुस्ती और सुझ बुझ का खेल है।
खो खो के लिए 111 फूट लंबा और 59 फूट चौड़ा मैदान होना चाहिए। इसमें दोनों तरफ से 10-10 फूट जगह छोड़कर 4 फूट ऊँचे लकड़ी के खंभे लगाए जाते है। खो खो की दोनो टीम में नौ खिलाड़ी होते है जिसमें से एक टीम भागती है और दुसरी उन्हें पकड़ती है। मैदान के बीच में दौड़ने की लाईने बनी होती है। एक चेजर पोल के पास खड़ा होता है और बाकि के आठ बैठे होते हो जिसमें सो किसी भी दो साथ बैठे खिलाड़ी का मुहँ एक दिशा में नहीं होता है। एक समय में तीन धावक ही मैदान में आते है और उन्हें पकड़ना होता है।
धावक पूरे मैदान में कहीं भी दौड़ सकता है पर चेजर एक दिशा में दौड़ सकता है और बैठे हुए खिलाड़ी कोलपीठ की तरफ से छुकर और खो बोलकर उसे दौड़ने के लिए कहता है और खुद उसके स्थान पर बैठ जाता है। खो खो में पहला चरण 9 मिनट का होता है उसके बाद 5 मिनट का ब्रेक होता है। दुसरे 9 मिनट के चरण में धावक चेजर बन जाते है और जो पहले चेज कर रहे थे अब वो दौड़ते है। स्कूलों में भी बच्चे खो खो खेलते है और बड़े स्तर पर भी भारत में खो खो के मैच कराए जाते हैं।
Essay on Kho Kho in Hindi Language – खो- खो पर निबंध ( 500 words )
कबड्डी के अलावा खो-खो हमारे देश मे परंपरागत रूप से पुराने जमाने से ही खेला जाता आ हैं । भारत देश में खो-खो खेल बहुत प्रसिद्ध है, गांव के ज्यादातर बच्चे खो-खो हि खेलते हैं क्योंकि इस खेल को खेलने में बहुत आनंद मिलता है । भारत में खो-खो सबसे सबसे ज्यादा लोकप्रिय पंजाब राज्य मैं हे । खो-खो का जन्म स्थान बड़ौदा माना जाता है । यह गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में अधिक खेला जाता है । भारत देश के अंदर बहुत सारे लोगों का ऐसा कहना है कि खो-खो गरीबों का खेल है क्योंकि खो खो खेलने के लिए हमें पैसों की आवश्यकता नहीं पड़ती है , मगर यह उनकी गलतफहमी होती है । यदि खो खो गरीबों का खेल होता तो भारत में इतना लोकप्रिय नहीं होता ।
मुझे कोई भी खेल खेलना पसंद है भले ही वह हॉकी,फुटबॉल, क्रिकेट, बैडमिंटन हो और भी ऐसे बहुत सारे खेल मैं खेलता हूं, लेकिन मुझे इन सब में सबसे ज्यादा खो-खो खेलना पसंद है । इस खेल को खेलते समय चोट लगने का भी खतरा बहुत कम होता है क्योंकि यह खेल मिट्टी के मैदान में खेला जाता है, जिससे गिरने पर भी चोट हमें नहीं लगती है । मैं जब छोटा था मतलब कि मुझे बचपन से ही खो खो खेलना बहुत पसंद है । मेरा आधा बचपन खो खो में ही बिता है, ओर बहुत बार में खो खो खेलने के लिए जिला कक्षा में गया था ।
खो-खो खेल में हर एक टीम में 9 सदस्य होते हैं । इस खेल को खेलने वाले धावक में स्फूर्ति का होना बहुत जरूरी होता है क्योंकि इस खेल में मुख्य दौड़ ही लगानी होती है ।
खो-खो खेलने के लिए 111 फुट लंबे और 51 फूट चौड़े मैदान की आवश्यकता होती है । दोनों और थोड़ा सा स्थान छोड़कर 4-4 फुट ऊंचे लकड़ी के खंभे लगाए जाते हैं और इन खंभों की बीच की दूरी आठ बराबर भागों में विभाजित कर दी जाती है । खो-खो खेलने के लिए एक टीम इसके अंदर बैठती है और दूसरी टीम दौड़ती है । बैठने वाले टीम के खिलाड़ी उन आठ समानांतर भागों में एक-दूसरे की तरफ पीठ करके बैठते है । यह खेल खुले वातावरण और खुले मैदान में खेला जाता है ।
मेरे दोस्तों के साथ मुझे खो खो खेलने में अतिशय आनंद प्राप्त होता है , मैं हमेशा से ही अपने दोस्तों को इस खेल में हराता हु । मगर बहुत बार दोस्तों को जिताने के लिए मैं खुद हार जाता हूं। खो-खो खेलने से हमें बहुत सारे फायदे होते हैं जैसे कि.. खो-खो खेलने से हमारे शरीर की मांसपेशियां मजबूत होती है । इस खेल को खेलने से हमारे सोचने समझने की शक्ति बढ़ती है । खो-खो खेलने से हमारे हाथ की हड्डियां मजबूत बनती है । हमें ऐसा लगता है जैसे हम जीवन में तनाव मुक्त हो चुके हैं, खो-खो खेलने के बाद जैसे हमारे शरीर के अंदर एकदम से ऊर्जा आ जाती है । ऐसे और भी बहुत सारे खो-खो खेलने के फायदे हैं ।
हम आशा करते हैं कि आप इस निबंध ( Essay on Mera Priya Khel Kho Kho in Hindi – खो- खो पर निबंध ) को पसंद करेंगे।
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