यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में विद्यार्थी जीवन पर निबंध मिलेगा। Here you will get Paragraph, Short and Long Essay on Students Life in Hindi Language for Students and Kids of all Classes in 200, 400 and 500 words.
Essay on Students Life in Hindi – विद्यार्थी जीवन पर निबंध
Essay on Students Life in Hindi – विद्यार्थी जीवन पर निबंध ( 200 words )
विद्यार्थी जीवन हर व्यक्ति के जीवन में वह समय होता है जिसमें वो अपने भविष्य की ठोस नींव तैयार करता है। इस दौरान व्यक्ति को एकाग्रचित होकर अध्ययन करना होता है। यह पाँच वर्ष की आयु से शुरू होता है। इस काल के दौरान ही हम अपना शारीरिक और मानसिक विकास कर सकते हैं। विद्यार्थी जीवन हमें समाज और अच्छे बुरे का फर्क बताता हैं। यह तपस्या और साधना से भरा होता हैं। इस दौरान हमारा मन भटकता है और बहुत से भोग विलासों में फँस जाता है। यह समय अध्ययन का होता है और हमें बस वही करना चाहिए।
आज के आधुनिक युग में विद्यार्थी जीवन में बच्चे गलत संगति में फँसते जा रहे हैं। वह पढ़ाई पर ध्यान न देकर पश्चिमी सभ्यता की ओर आकर्षित होते जा रहे हैं। इस तरह वह जीवन का सबसे अनमोल समय खराब करते जा रहें हैं और साथ ही अपने भविष्य को भी अंधकार में डालते जा रहे हैं। विद्यार्थी जीवन में हम किताबी ग्यान से अलावा और भी बहुत सी चीजों को सीख सकते हैं। यही वह काल है जब हम अनुशासन में रहना और समय का पालन करना सीख सकते हैं। हमें चाहिए कि हम सभी अपने विद्यार्थी जीवन का पूरा लाभ उठाए और अच्छी चीजे सीखें।
Essay on Students Life in Hindi – विद्यार्थी जीवन पर निबंध (400 words)
छात्रों ने हमेशा एक राष्ट्र के विकास में एक प्रेरणादायक भूमिका निभाई है| अपने ज्ञान, उत्साह और उत्साह के माध्यम से, उन्होंने देश में विकास की गति को नया जीवन दिया है। ज्ञान के अलावा, वे अपने साथ ताजा और अभिनव विचार ले आते हैं। अपने विचारों के साथ देश प्रगति की एक नई वृद्धि का अनुभव करता है लेकिन यह तब ही हो सकता है जब छात्र अपने जीवन और ऊर्जा को पढ़ाई के लिए समर्पित करते हैं। और उसी समय मानसिक रूप से सावधान रहना, शारीरिक रूप से फिट और सामाजिक अनुशासित। अनुशासन के साथ जिम्मेदारी आता है कोई भी राष्ट्र छात्र अनुशासनहीनता के चेहरे में प्रगति करने की उम्मीद कर सकता है।
इसके विपरीत, यह विलुप्त होने का खतरा है। किसी अनुशासनहीन छात्र से जिम्मेदार, परिपक्व और सम्मानजनक नेताओं को बनाने की उम्मीद नहीं कर सकते। अनुशासन की खेती की जाती है, इसे रात-रात का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता। एक छात्र को अपने पाठ के अलावा आत्म-नियंत्रण होना चाहिए। उसे किसी भी कार्य से पहले सोचने की शक्ति का विकास करना चाहिए। इसके बाद, एक छात्र को नैतिक ताकत को विकसित करना चाहिए। एक मजबूत चरित्र परिपक्व होता है, जो बदले में एक छात्र को विभिन्न विचारों और विचारों को समझने में मदद करता है।
पिछले कुछ वर्षों में छात्रों ने मूल्य वृद्धि, बेरोजगारी या कुछ राज्यों या दूसरे में विधानसभा के प्रतिनिधित्व के परिवर्तन के लिए विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया है। इसने पढ़ाई के मामले में भारी खर्च किया है, कैरियर की संभावनाओं को शुष्क करना। उन्हें ऐसी गतिविधियों में शामिल होने से बचना चाहिए। क्योंकि इस तरह की निविदा उम्र में उनकी पहली कर्तव्य एक मजबूत बौद्धिक नींव का निर्माण करना है। वे अभी भी भविष्य के लिए प्रशिक्षण की प्रक्रिया में हैं। इसलिए राजनेताओं द्वारा निर्देशित दिशा-निर्देशों के बदले उन्हें सहकारिता, स्व-सहायता और आत्मनिर्भरता के गुणों को प्राप्त करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
अंत में, छात्रों को हिंसा से बचना चाहिए। हिंसक परिस्थितियों में उन्हें नेतृत्व करने के लिए राजनीतिक एजेंसियों के सभी प्रयासों की अनदेखी करके छात्रों को हद तक हिंसा के पंथ को समाप्त करना पड़े। दूसरे शब्दों में, एक छात्र को मानसिक, नैतिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से अच्छी तरह से तैयार करने के बारे में अधिक ध्यान देना चाहिए ताकि उनकी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे अपनी मातृभूमि के विकास की दिशा में जिम्मेदारियों को उठाने के लिए तैयार हो जाएं।
Essay on Students Life in Hindi – विद्यार्थी जीवन पर निबंध (500 words)
भूमिका –
‘विद्यार्थी शब्द विद्या+अर्थी से बना है। इसका अर्थ है विद्या चाहने वाला। केवल चाहने मात्र से विद्या प्राप्त नहीं होती। इसके लिए तप और त्याग का जीवन बिताना पड़ता है। ‘विद्यार्थी जीवन’ मानव जीवन की आधारशिला मानी गई है। बह्मचर्य आश्रम के प्रथम 25 वर्ष ज्ञान प्राप्ति के लिए रखे गए थे।
विशेषता –
विद्यार्थी जीवन का अपना महत्व है। विद्यार्थी जीवन मानव जीवन की स्वर्णिम बेला है। जैसे संस्कार इस काल में पड़ जाते है, वैसा ही उसका जीवन रूपी वृक्ष खड़ा होता है। इस आयु में न कमाने की चिन्ता होती है और न ही कोई बुढ़ापे के रोग होते हैं। शरीर और मस्तिष्क के विकास का यह उत्तम समय है। इसमें निश्चिन्तापूर्ण मस्ती होती है। आज का बालक कल पिता बनेगा। आज का छात्र कल का नागरिक होगा। वह अभियन्ता, सैनिक, चिकित्सक, वायुयान चालक, अध्यापक एवं नेता बन कर देश की बागडोर सम्भालेगा। उसकी प्रगति में देश की प्रगति निहित है। जिस देश के नागरिक सुशिक्षित और चरित्रवान होंगे वह देश जल्दी उन्नति के जिधर पर पहुँच जाएगा। अतः विद्यार्थी जीनव की महत्ता स्वतः सिद्ध है।
विद्यार्थी का कर्तव्य –
विद्यार्थी का उद्देश्य विद्या अर्जन करना है। शिक्षा प्राप्त करके विद्यार्थी एक योग्य नागरिक बनता है। गाँधी जी के अनुसार शिक्षा शरीर, मन और आत्मा का विकास है। केवल पुस्तकें पढ़ने से कोई लाभ नहीं होता। पुस्तकों का अध्ययन करने के साथ चिन्तन और मनन भी आवश्यक है। शरीर के विकास के लिए व्यायाम और खेलना भी परमावश्यक है। देश को कमजोर और किताबी कीड़ों से लाभ नहीं हो सकता। आत्मा के विकास से तात्पर्य चरित्र निर्माण है। नैतिक शिक्षा द्वारा चरित्र का विकास संभव है। आदर्श अध्यापक अपने गुणों द्वारा छात्रों को प्रभावित करके चरित्रवान बना सकते हैं। विद्यार्थी को तप और त्याग का जीवन व्यतीत करना चाहिए। उसे राजनीति से दूर रह कर अपनी शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए। अपने लक्ष्य को सामने रख कर विद्यार्थी को धीरज, उत्साह और आत्मसंयम से काम लेना चाहिए।
पुरातन व आधुनिक विद्यार्थी –
प्राचीन काल में शिक्षा गुरुकुलों में होती थी। विद्यार्थी आश्रम में रह कर विद्याध्ययन करते थे। उनमें गुरुजनों एवं बड़ों के लिए आदर भाव, भ्रातृत्व की भावना तथा सौहार्दता भरी होती थी। वे श्रीराम, श्री कृष्ण एवं चन्द्रगुप्त की तरह यशस्वी होते थे। ‘सादा जीवन उच्च विचार अपना कर विद्यार्थी जीवन-यापन करते थे। आज का विद्यार्थी शिक्षा के आधुनिक साधन प्राप्त करके शिक्षा ग्रहण करता है। मेज, कुर्सी, श्यामपट, पुस्तकें, समाचारपत्र, चलचित्र, दूरदर्शन, प्रयोगशालाएँ, दृश्य श्रव्य साधन उसकी शिक्षा में सहायता करते हैं। विदेशी सभ्यता में रंग जाने के कारण आज का छात्र सादगी छोड़कर फैशन अपनाता है। आत्मसंयम से वह कोसों दूर भाग रहा है। चलचित्र, धूम्रपान, मद्यपान आदि व्यसन उसे भाते हैं। यह देखकर आजकल माता पिता अत्यधिक चिन्तित हैं।
उपसंहार –
विद्यार्थी का मुख्य उद्देश्य विद्या ग्रहण करना है। इस उद्देश्य को सामने रखकर विद्यार्थी को शरीर और आत्मा का विकास करना चाहिए। विदेशी सभ्यता के गुणों को अवश्य अपनाना चाहिए। उन्हें प्राचीन संस्कृति से शिक्षा लेते। हुए माता पिता, गुरुओं एवं वृद्धजनों का आदर करना चाहिए।
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